Rajasthan Diwas: 75 साल का हुआ राजस्थान, मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने दी बधाई, आज फ्री रहेंगी ये सेवाएं #आपणो_अग्रणी_राजस्थान #राजस्थान_स्थापना_दिवस #KFY #KHABARFORYOU #KFYNEWS #KFYSOCIAL

- DEEPIKA RANGA
- 30 Mar, 2024
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राजस्थान आज 75 साल का हो गया है। जो अपने इतिहास के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहां के रजवाड़े-हवेलियां और थार का रेगिस्तान टूरिस्ट अपने-आप में खास है। गुलाबी, नीले और सोने के रंग से सजे यहां के शहर अपने आप में खास है। राजस्थान स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। बता दें कि 30 मार्च 1949 को सरदार पटेल ने जयपुर के सिटी पैलेस में हुए समारोह में ग्रेटर राजस्थान का उद्घाटन किया था।
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विवरण - 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
तिथि - 30 मार्च
राजस्थान की स्थापना - 18 मार्च, 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में 1 नवंबर, 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
संबंधित लेख. - राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, रानी बाघेली, पन्ना धाय, तराइन का प्रथम युद्ध, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, राणा सांगा
अन्य जानकारी .- राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था।
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राजस्थान की स्थापना
राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्रवाई शुरू की, तभी लग गया था कि आज़ाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी।
इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का क़ब्ज़ा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में 1 नवंबर 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।
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सात चरणों में बना राजस्थान
18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर 'मत्स्य संघ' बना। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी।
25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना।
18 अप्रॅल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय। नया नाम 'संयुक्त राजस्थान संघ' रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने।
30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
15 अप्रॅल, 1949 को 'मत्स्य संघ' का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया।
26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।
1 नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ।
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गौरवशाली इतिहास
इंग्लैण्ड के विख्यात कवि किप्लिंग ने लिखा था, 'दुनिया में अगर कोई ऐसा स्थान है, जहां वीरों की हड्डियां मार्ग की धूल बनी हैं तो वह राजस्थान कहा जा सकता है।' वीर तो वीर, वीरांगनाएं भी अपनी माटी के लिए कुर्बानी देने में नहीं झिझकीं। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को चांद-तारों सा चमका दिया। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। यहां धरती का वीर योद्धा कहे जाने वाले पृथ्वीराज चौहान ने जन्म लिया, जिन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद ग़ोरी को पराजित किया। कहा जाता है कि ग़ोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था जिसमें 17 बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी ने तो हाथों से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। राणा सांगा ने सौ से भी ज्यादा युद्ध लड़कर साहस का परिचय दिया था। पन्ना धाय के बलिदान के साथ बुलन्दा (पाली) के ठाकुर मोहकम सिंह की रानी बाघेली का बलिदान भी अमर है। जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए वे उन्हें अपनी नवजात राजकुमारी की जगह छुपाकर लाई थीं।
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'सद्भाव की संस्कृति को सहेजने का दिवस'
राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने संदेश में कहा कि 'राजस्थान' नाम ही मन में गौरव की अनुभूति कराने वाला है. भक्ति और शक्ति का संगम यह वह प्रदेश है, जहां के कण-कण में त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथाएं समाहित है. राजस्थान महाराणा प्रताप की शौर्य धरा है. मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व दान करने वाले भामाशाह की यह भूमि है. पन्नाधाय के त्याग और बलिदान की अनूठी गाथा अपने में संजोए यह धरती रामदेवजी, गोगाजी, मां करणी जैसे लोक देवी-देवताओं और मीरा, दादू, संत पीपा जैसे संत-महात्माओं की पुण्य धरा है. यह वह वीर भूमि है, जहां स्वतंत्रता का बीज कभी मुरझाया नहीं. राजस्थान स्थापना दिवस मात्र एक दिवस नहीं है. यह दिवस सद्भाव की हमारी संस्कृति को सहेजने का है. संकल्पित होकर राजस्थान के सर्वांगीण विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने का है. राजस्थान दिवस पर प्रदेश के चहुंमुखी विकास का संकल्प लेते हुए इसे देश का अग्रणी राज्य बनाने में सभी-जन सहभागी बनें.'
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'आपसी सद्भाव व भाईचारे को मजबूत बनाएं'
मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने भी राजस्थान दिवस के मौके पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं. सीएम शर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अपने संदेश में कहा कि राजस्थान के पर्यटन, लोक कला, संस्कृति एवं समृद्ध विरासत की विश्वभर में पहचान है. प्रदेश के गौरवशाली इतिहास में शौर्य और वीरता की गाथाएं रची-बसी हैं. यहां की माटी के कण-कण में देशभक्ति और स्वाभिमान समाहित है. मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर प्रदेशवासियों का आह्वान किया है कि वे आपसी सद्भाव व भाईचारे को मजबूत बनाने के साथ ही प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत एवं समृद्ध परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प लें. आपको बताते चलें कि 75वें राजस्थान दिवस पर शनिवार को जिला मुख्यालय पर विशेष आयोजन होंगे, जिसमें प्रदेश के समेकित विकास के साथ वैविध्य व लोक संस्कृति का दिग्दर्शन करवाती प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा. वहीं राजस्थान दिवस पर पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के संग्रहालयों में प्रवेश नि:शुल्क रहेगा.
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