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बीकानेर स्थापना दिवस: रेत में उगता इतिहास और संस्कृति का स्वर्णिम दीपक #AkshayaTritiya #Bikaner #अक्षय_तृतीया #AkshayaTritiya2025 #बीकानेर_स्थापना_दिवस

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बीकानेर, राजस्थान का एक ऐतिहासिक नगर, जहां की हवाओं में वीरता की गाथाएं गूंजती हैं और रेत के कणों में संस्कृति की सुगंध बसती है। हर वर्ष 5 मई को बीकानेर स्थापना दिवस मनाया जाता है, जो इस गौरवशाली नगर के इतिहास और उसकी समृद्ध विरासत को श्रद्धांजलि देने का अवसर होता है।

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इतिहास की झलक

बीकानेर की स्थापना 1488 ईस्वी में राव बीका ने की थी, जो जोधपुर के राठौड़ शासक राव जोधा के पुत्र थे। राव बीका ने अपनी वीरता और रणनीतिक कौशल से मरुभूमि के इस अंचल को एक सशक्त और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया। उनके नाम पर ही इस शहर का नाम "बीकानेर" पड़ा।

 

संस्कृति और परंपरा का संगम

बीकानेर केवल अपने किलों, हवेलियों और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की लोकसंस्कृति, ऊँट उत्सव, भुजिया और रसगुल्ला जैसी मिठाइयाँ भी विश्वप्रसिद्ध हैं। यहां के लोग अपनी भाषा, पहनावे और जीवनशैली में पारंपरिक मूल्यों को आज भी संजोए हुए हैं।

 

स्थापना दिवस का उत्सव

स्थापना दिवस पर शहर में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारंपरिक नृत्य, लोकगीत, कवि सम्मेलन, और प्रदर्शनी का आयोजन होता है। बीकानेरवासी इस दिन को बड़े गर्व और उत्साह से मनाते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यक्रम होते हैं जहाँ बच्चों को अपने नगर के इतिहास से अवगत कराया जाता है।

 

वर्तमान में बीकानेर

आज बीकानेर एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित हो चुका है, लेकिन उसकी आत्मा अब भी अपने गौरवशाली अतीत से जुड़ी हुई है। पर्यटन, शिक्षा, कृषि, और ऊँट पालन जैसे क्षेत्रों में बीकानेर ने विशेष पहचान बनाई है।

 

बीकानेर स्थापना दिवस और आखातीज: परंपरा, इतिहास और नवआरंभ का पर्व

राजस्थान की तपती रेत में जब मई की शुरुआत होती है, तब बीकानेर एक खास उत्सव की तैयारी करता हैबीकानेर स्थापना दिवस और आखातीज (अक्षय तृतीया) ये दोनों दिन केवल ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी गहरे अर्थ रखते हैं। संयोगवश, बीकानेर की स्थापना भी जिस दिन हुई थी5 मई 1488वह दिन आखातीज ही था, जो इसे और अधिक पावन और ऐतिहासिक बना देता है।

 

बीकानेर की स्थापना: आखातीज का शुभ संयोग

राव बीका, जो राव जोधा (जोधपुर के संस्थापक) के पुत्र थे, ने अपने पराक्रम और दूरदृष्टि से मरुस्थलीय भूमि पर एक नए नगर की नींव रखी। आखातीज, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया को आता है और इसे अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त के किया जा सकता है, क्योंकि इसे "अक्षय" अर्थात "कभी समाप्त होने वाला" पुण्यफल देने वाला दिन माना जाता है। यही कारण था कि राव बीका ने भी बीकानेर की स्थापना के लिए इस दिन को चुना।

 

आखातीज: समृद्धि और नवआरंभ का प्रतीक

आखातीज केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह नवजीवन, समृद्धि, और शुभारंभ का प्रतीक है। ग्रामीण अंचलों में इस दिन खेती-बाड़ी की शुरुआत होती है, नए व्यापार और विवाह के मुहूर्त लिए जाते हैं। बीकानेर में भी इस दिन पारंपरिक व्यंजन बनते हैं, महिलाएं गीत गाती हैं, और घरों में मांगलिक कार्यक्रम होते हैं।

 

संस्कृति और उत्सव का संगम

बीकानेर में इस दिन विशेष झांकियां, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और रैली आयोजित की जाती हैं। ऐतिहासिक स्थलों जैसे जूनागढ़ किला, लालगढ़ महल आदि को सजाया जाता है। स्थानीय कलाकार लोकगीतों और नृत्य के माध्यम से बीकानेर की विरासत को जीवंत करते हैं।

 

आज का बीकानेर: परंपरा और प्रगति साथ-साथ

आज बीकानेर आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए भी अपनी परंपराओं से जुड़ा हुआ है। स्थापना दिवस और आखातीज इस बात का प्रतीक हैं कि कैसे एक शहर अपनी ऐतिहासिक जड़ों को सहेजते हुए नए युग की ओर बढ़ सकता है।

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