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मदद करने वाले युवक को ही मिली सजा ! रास्ते में पैसों से भरा बैग को पुलिस थाने लेकर पहुंचा तो पुलिस ने उसे ही फसा दिया... #BagFullOfMoney #PoliceTrapped

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रायबरेली में एक युवक को रास्ते में पैसों से भरा बैग मिला. वह इसे लेकर गदागंज पुलिस थाने पहुंच गया. लेकिन आरोप है कि पुलिस ने उसे ही गलत तरीके से लूट के  रायबरेली में एक ऐसा पुलिस का  कारनामा सामने आया है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। मामला उत्तर प्रदेश के रायबरेली के गदागंज थाना का है। बीते बीस अगस्त को यहां जन सुविधा केंद्र संचालक रवि चौरसिया दुकान बंद कर जा रहे थे, तभी उनके साथ लूट हो गई। बाइक सवार बदमाश रवि चौरसिया के हाथ से बैग छीन कर फरार हो गए, जिसमें आठ लाख रूपये थे।

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बताया जा रहा है कि बदमाश हड़बड़ाहट में बैग सड़क के किनारे ही छोड़कर फरार हो गए थे क्योंकि तभी सामने से एक वाहन आ गया था। बाद में रुपयों से भरा यह बैग दीपू नाम के व्यापारी को मिला था जिसे उसने इलाके के मानिंद लोगों के साथ थाने में जमा कराया था। यही वो समय था जब गदागंज एसओ राकेश चंद्र आनंद की नीयत खराब हुई और कप्तान की निगाह में बेहतर बनने के चक्कर में उसने नेक काम करने आये दीपू को ही लूट का आरोपी बना दिया।

दरअसल, जमुनीपुर चरुहार निवासी गौरव उर्फ दीपू को लूट के आरोप में 26 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था 

व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद कर विरोध जताया था. विवाद बढ़ने पर सर्किल ऑफिसर से घटना की जांच करवाई गई तो पाया गया कि युवक लूट में नहीं शामिल था. बल्कि, उसे सच में सड़क किनारे रुपये से भरा बैग मिला था. मगर, जल्दबाजी में स्थानीय पुलिस ने उसे आरोपी बना जेल में डाल दिया.  

इस मामले में अधिकारियों ने बताया कि पूछताछ के बाद गौरव उर्फ दीपू शनिवार शाम को रिहा कर दिया गया. वहीं, दीपू ने बाहर आने के बाद जब मीडिया के सामने अपनी कहानी बताई तो पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए. 

"पीड़ित दीपू को 20 अगस्त को घर लौटते समय एक बैग मिला था और उसने तुरंत ग्राम प्रधान प्रतिनिधि के साथ स्थानीय पुलिस स्टेशन को इसकी सूचना दी थी. हालांकि, पुलिस ने उस पर लूट का आरोप लगाया, जिसके कारण 26 अगस्त को उसे गिरफ्तार कर लिया गया. "

 ग्रामीणों और स्थानीय व्यापारियों ने दीपू की रिहाई की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने दलील दी कि वह निर्दोष है और पुलिस ने मामले को गलत तरीके से हैंडल किया है. सार्वजनिक आक्रोश के मद्देनजर, पुलिस ने जांच शुरू की और अंततः यह निर्धारित किया कि वह लूट/डकैती में शामिल नहीं था. 

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) संजीव कुमार सिन्हा ने बताया कि साक्ष्य के अभाव में पुलिस ने गौर उर्फ दीपू को छुड़ाने की पहल की है. वहीं, स्थानीय लोगों ने कहा कि पुलिस ने गुड वर्क दिखाने के चक्कर में जल्दबाजी बरतते हुए एक बेकसुर युवक को जेल भेज दिया. 12 दिन बाद उसकी रिहाई हुई है. उसका कसूर सिर्फ इतना था कि रास्ते में पड़े लावारिस बैग को उसने सही सलामत पुलिस के पास पहुंचाया था. 

पीड़ित ने बताया कि एसओ साहब ने बैग जमा करने के बाद उसे दो दिन तक थाने में बैठाए रखा, इसके बाद जंगल ले गए, वहां पर बैग देकर उसका वीडियो बनाया, फिर 26 अगस्त को लूट के मामले में फंसा दिया. हालांकि, अपनी रिहाई पर युवक खुश तो है, लेकिन कानून की इस कार्रवाई से वह सदमे में भी है. 

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