पर्यावरण बचाने के लिए सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश का बड़ा कदम, दुनिया भर में काबिले-तारीफ #KFY #KHABARFORYOU #KFYNEWS #KFYWORLD
- Aakash .
- 21 Apr, 2024
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सबने बचपन से पर्यावरण को लेकर बहुत सी चीजें पढ़ी है जिनसे हम ये तो जानते हैं कि पर्यावरण ही जीवन का आधार है। परन्तु बढ़ते आधुनिकीकरण में पर्यावरण कही पीछे छूट गया है। तकनीकी क्षेत्र के विकास से कही न कही पर्यावरण को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचा है। पर्यावरण को बचाने के लिए कई तरह की मुहिम और योजनाओं पर काम किया जा रहा है।
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पर्यावरण बचाने में भारत का योगदान अतुलनीय है। भारत में सालों और सदियों से नहीं बल्कि युगों-युगों से पेड़ पौधों और नदियों की पूजा हो रही है। जैसे पेड़-पौधों में जान होती है। पीपल में देवता का वास होता है। 'वट सावित्री' व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा होती है। लक्ष्मी माता को कमल का फूल पसंद है। हमें वृक्षारोपण करना चाहिए। पेड़ ऑक्सीजन देते हैं उन्हें नहीं काटना चाहिए। नदियों को साफ रखना चाहिए। जैसी बातों के धार्मिक मान्यताओं से जुड़े होने के सराहनीय परिणाम दुनिया ने देखे हैं। अब भारत से करीब 7000 किलोमीटर दूर दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में आस्था और विश्वास के नाम पर धरती को बचाने की मुहिम चलाई जा रही है, जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो रही है।
मकसद : ग्लोबल वार्मिंग को कम करना
इंडोनेशिया में
जलवायु परिवर्तन रोकने और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम करने की कोशिशें भी रंग ला
रही हैं। स्थानीय मीडिया के मुताबिक मस्जिदों के इमाम,
मौलाना और मुस्लिम स्कॉलर कुदरत को बचाने का संदेश दे रहे हैं। इमाम नसरुद्दीन उमर इस मुहिम को बड़े पैमाने पर
चला रहे हैं। उनका कहना है कि हम प्रकृति के प्रति
जितने लालची होंगे, प्रलय का दिन उतनी ही जल्दी आएगा।
दुनिया बचाने के लिए दी जा रही सीख
इस्लाम में तौहीद
या शहादा, नमाज़, रोज़ा, ज़कात (दान) और हज का बड़ा महत्व है। हर मुसलमान को इन्हें अपनी जिंदगी का आधार मानकर
चलना होता है। इन्हीं शिक्षाओं के जरिए कुदरत बचाने का
संदेश दिया जा रहा है। इमाम उमर की बात करें तो उनका कहना है कि
वो हफ्ते में एक दिन सभी को पर्यावरण बचाने की मुहिम में जागरूक करते हैं। लोग जो अमल लाते हैं उसका रिव्यू करते हैं। इस तरह वो दुनिया बचाने में अपनी भूमिका निभा रहे
हैं।
इमाम नसरुद्दीन उमर का कहना है कि जैसे रमज़ान के दौरान उपवास करना, यह हर मुसलमान का कर्तव्य है। ज़कात (दान देना) जरूरी है, वैसे ही पृथ्वी का संरक्षक बनने के लिए भी काम करना चाहिए, जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी आर्थिक मदद करना नेक काम है। रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) जैसी मुहिम को बढ़ावा देने के साथ हमें अपनी दैनिक प्रार्थनाओं की तरह, पेड़ लगाने की अच्छी आदत होनी चाहिए।
कुदरत बचाने के लिए जारी किया फतवा
जकार्ता की इस्तिकलाल मस्जिद के इमाम के उपदेशों में प्रकृति यानी कुदरत को बचाने की चर्चा पर फोकस रहता है। जिस नदी के किनारे ये मस्जिद है, उसमें कूड़ा-कचरा जमा हुआ तो उन्होंने लोगों को उसकी सफाई करने का आदेश दिया। बिजली के बढ़े बिलों पर काबू पाने के लिए उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद में सोलर पैनल लगावाए हैं। उन्होंने पूरे परिसर में धीमी गति से प्रवाह वाले नल लगवाए हैं। पानी को रिसाइकिल करने के लिए लिए भी काम किया गया है। धरती बचाने की उनकी मुहिम के चलते इस मस्जिद की चर्चा वर्ल्ड बैंक तक हो चुकी है।
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