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अक्षय तृतीया तिथि और पूजा शुभ मुहूर्त 2024 #AkshayaTritiya2024 #KFY #KFYNEWS #KHABARFORYOU #NATIONALNEWS

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Name:-DEEPIKA RANGA
Email:-DEEPDEV1329@GMAIL.COM
Instagram:-KHABAR_FOR_YOU



धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ भी हुआ था, इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं।इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाई जाती है। यह पर्व हिंदू और जैन दोनों ही धर्म के भक्तों के लिए विशेष होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह तिथि बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण मानी गई है। वैदिक पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया का पर्व हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय न हो या फिर जिसका कभी नाश न हो। इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना गया है, यानी इस तिथि पर किसी भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्य को करने के लिए मुहूर्त का विचार नहीं करना पड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस शुभ पर्व पर किया जाने वाले दान-पुण्य, पूजा-पाठ, जाप-तप और शुभ कर्म करने पर मिलने वाला फलों में कमी नहीं होती है। इस दिन सोने के गहने खरीदने और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष अक्षय तृतीया का पावन त्योहार 10 मई को है, हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के पर्व का विशेष महत्व होता है।

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अक्षय तृतीया तिथि और पूजा शुभ मुहूर्त  2024

इस वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व शुक्रवार, 10 मई को मनाया जाएगा। वैदिक पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी। वहीं इस तृतीया तिथि का समापन 11 मई 2024 को सुबह 02 बजकर 50 मिनट पर होगी। उदया तिथि के आधार पर 10 मई को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया त्योहार पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। 

अक्षय तृतीया का महत्व

- अक्षय तृतीया के पर्व को आखा तीज के नाम से भी जाना है। इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाई जाती है। यह पर्व हिंदू और जैन दोनों ही धर्म के भक्तों के लिए विशेष होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ भी हुआ था, शुभ कार्यों को संपन्न करने के लिए अक्षय तृतीया की तिथि बहुत ही खास मानी गई है। इस दिन नई योजना को शुरू करने, नए व्यवसाय, नौकरी, नए घर में प्रवेश करने और शुभ खरीदारी के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। 

- अक्षय तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान श्री परशुराम जी की जयंती भी मनाई जाती है। भगवान परशुराम को चिरंजीवी माना गया है इस कारण से इस चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है। 

- अक्षय तृतीया तिथि से ही उड़ीसा के प्रसिद्धि पुरी रथ यात्रा के लिए रथों के निर्माण का कार्य शुरू हो जाता है।  

- अक्षय तृतीया तिथि पर ही वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी जी के मंदिर में सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक बार श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।

- धार्मिक मान्यताओं  के अनुसार अक्षय तृतीया की तिथि पर ही मां गंगा का पृथ्वी में आगमन हुआ था।

- अक्षय तृतीया के दिन ही वेद व्यास और श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ के लेखन का प्रारंभ किया गया था।

- इस तिथि पर ही हर वर्ष श्री बद्रीनाथ के कपाट खोले जाते हैं ।

शास्त्रों में अक्षय तृतीया तिथि को स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त माना गया है। यानी इस तिथि पर बिना मुहूर्त का विचार किए सभी प्रकार के शुभ कार्य संपन्न किया जा सकता है। इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सोने-चांदी के आभूषण. घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अबूझ मुहूर्त की तिथि पर व्यापार आरम्भ, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, दान-पुण्य,पूजा-पाठ अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता।

हिंदू धर्म में सभी तिथियों में अक्षय तृतीया का विशेष तिथि माना गया है। अक्षय तृतीया सर्व सिद्धि मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना का विशेष महत्व होता है। अपने और परिवार की सुख- समृद्धि के लिए व्रत रखने का महत्व होता है।| अक्षय तृतीया पर सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान या घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करके  श्री विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। फिर इसके बाद श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धूप-अगरबत्ती और चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि अर्पित करें। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष अक्षय तृतीया का त्योहार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में भी इस तिथि का विशेष महत्व होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब अक्षय तृतीया का पर्व आता है तब सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में रहते हैं, साथ ही इस तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद होते हैं। माना जाता है इस दौरान सूर्य और चंद्रमा दोनों ही सबसे ज्यादा चमकीले यानी सबसे ज्यादा प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। इस तरह से अक्षय तृतीया पर ज्यादा से ज्यादा प्रकाश पृथ्वी की सतह पर मौजूद रहता है। इस कारण से इस अवधि को सबसे शुभ समय माना जाता है।

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