क्या आप जानते हैं गणगौर का त्योहार क्यों मनाया जाता है? #Gangaur #Rajasthan #Festival #KFY #KHABARFORYOU #KFYNEWS #KFYSOCIAL
- TEENA SONI
- 05 Apr, 2024
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क्या आप जानते हैं गणगौर का त्योहार क्यों मनाया जाता है? शायद आप में कुछ लोग ऐसे हो जिन्हें की इस पवित्र पर्व के विषय में पता हो। मैं आपको बता देना चाहती हूँ की बाकी के भारतीय पर्वों की तरह गणगौर भी एक खूब पावन पर्व होता है। वैसे तो भारत को पर्वों का देश कहा जाता है क्योंकि भारत में अनेकों पर्व धूम धाम से मनाये जाते हैं। खासकर हिन्दू धर्म में इतने पर्व है कि कोई अंदाज़ नहीं लगा सकता। क्योंकि कुछ पर्व क्षेत्रीय प्रकार के होते हैं जिन्हें सभी क्षेत्र में न मनाकर कुछ सीमित क्षेत्रों में मनाया जाता है। इसी तरह गणगौर एक हिन्दू पर्व है लेकिन इसे सभी हिन्दू नहीं मनाते है। देखा जाये तो गणगौर है तो एक पर्व ही, वहीँ गणगौर से जुडी ऐसे बहुत से बातें हैं जिनके विषय में शायद आपको कुछ भी मालूम न हो। इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों ये बताया जाये की गणगौर क्यों मनाई जाती है? तो फिर चलिए शुरू करते हैं और गणगौर व्रत के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं। गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की हिन्दुवों द्वारा मनाया जाता है। गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर। इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है। गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और वहां इसकी काफी मान्यता है। इसे राजस्थान में आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन गणगौर की पूजा की जाती है, लड़कियां एवं महिलाएं शंकर जी एवं पार्वती जी की पूजा करती हैं। गणगौर पर्व से भगवान शंकर और माता पार्वती की कहानी जुड़ी हुई है इसीलिए इस पर्व की हिन्दू धर्म में काफी मान्यता है।
जैसे की मैंने पहले भी कहा है की, गणगौर एक हिन्दू धर्मावलंबियों का पर्व है जो भारत देश में मुख्यतः राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में मनाया जाता है। मान्यता है गणगौर पर्व के पीछे हिन्दू धर्म के भगवान शंकर और मां पार्वती जी की कहानी जुड़ी हुई है
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त्योहार - गणगौर
अन्य नाम - गणगौरी तीज
अनुयायी - राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और पश्चिम बंगाल के हिन्दू महिलाएं
प्रकार - धार्मिक, सांस्कृतिक
महत्व - विवाहित स्त्रियों के लिए पति की दीर्घायु और कुँवारी लड़कियों के लिए अच्छे वर की कामना
उत्सव - 16 दिनों तक चलने वाले उत्सव, मेहंदी, गीत, और मूर्ति पूजा
आवृत्ति - वार्षिक
संबंधित - करवा चौथ, वरलक्ष्मी व्रतम
तारीख - 11 अप्रैल, 2024
गणगौर पर्व कैसे मनाया जाता है?
गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है। यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है। इस पर्व को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती हैं। इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रत रख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है। इस दिन महिलाएं गणगौर मतलब शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते समय दूब से दूध की छांट देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। नवविवाहित महिलाएं पहला गणगौर का पर्व अपने पीहर आकर मनाती है। गणगौर की पूजा में लोकगीत भी गाये जाते हैं जो इस पर्व की शान है।
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गणगौर क्यों मनाया जाता है?
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आया होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के पीछे मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है। राजस्थान में ये पर्व 16 दिनों तक लगातार धूम धाम से मनाया जाता है। राजस्थानी में कहावत है ‘तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर‘ अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है।
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गणगौर की कहानी
माना जाता है कि प्राचीन से समय माता पार्वती ने भगवान शंकर जी को वर (पति) के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया। फलस्वरूप माता पार्वती की इस तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर माता पार्वती के सामने प्रकट हो गए। भगवान शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने का अनुरोध किया। वरदान में माता पार्वती जी ने भगवान शंकर जी को ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई और मां पार्वती जी का विवाह भोलेनाथ के साथ सम्पन्न हुआ। मान्यता है कि भगवान शंकर जी ने इस दिन माँ पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। मां पार्वती ने यही वरदान उन सभी महिलाओं को दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर जी की पूजा साथ में विधि विधान से करें और व्रत रखें।
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