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यासीन मलिक का चौंकाने वाला दावा: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाफिज सईद से मुलाकात के लिए उन्हें 'शुक्रिया' कहा

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एक चौंकाने वाले खुलासे में, कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2006 में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के संस्थापक हाफिज सईद से उनकी मुलाकात के लिए "आभार" व्यक्त किया था। ये सनसनीखेज दावे मलिक द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे का हिस्सा हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित आतंकवादी के साथ यह मुलाकात भारत के खुफिया ब्यूरो (आईबी) के इशारे पर कराई गई थी।

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25 अगस्त को दाखिल इस हलफनामे में पूर्व प्रधानमंत्रियों और उच्च पदस्थ खुफिया अधिकारियों सहित शीर्ष भारतीय अधिकारियों के साथ मलिक की कथित बातचीत का विस्तृत विवरण दिया गया है। टेरर फंडिंग के आरोप में तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक का दावा है कि ये मुलाकातें जम्मू-कश्मीर में शांति लाने के लिए केंद्र सरकार के नेतृत्व वाली पहल का हिस्सा थीं।


कथित मुलाकात के मुख्य बिंदु

हाफिज सईद से मुलाकात: यासीन मलिक का दावा है कि 2006 में एक बड़े भूकंप के बाद मानवीय सहायता कार्य के लिए पाकिस्तान की यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात हाफिज सईद से हुई थी।

आईबी की भूमिका: हलफनामे के अनुसार, सईद और अन्य आतंकवादी नेताओं के साथ बैठक का विशेष रूप से आईबी के वरिष्ठ अधिकारियों, जिनमें विशेष निदेशक वीके जोशी भी शामिल थे, ने अनुरोध किया था।

प्रधानमंत्री सिंह को जानकारी देना: भारत लौटने पर, मलिक का दावा है कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पाकिस्तानी आतंकवादी नेताओं के साथ अपनी बातचीत के बारे में जानकारी दी थी।

प्रधानमंत्री का आभार: मलिक का आरोप है कि इस बैठक के दौरान, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सईद से मुलाकात में मलिक के "प्रयासों, समय, धैर्य और समर्पण" के लिए "अपना आभार व्यक्त किया"


संदर्भ और विवाद

मलिक के हलफनामे में गुप्त कूटनीति की एक तस्वीर उभरती है, जहाँ कथित तौर पर उन्हें भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों में गहराई से शामिल लोगों से बातचीत करने का काम सौंपा गया था। उनका दावा है कि उनकी मानवीय यात्रा का इस्तेमाल इन संवेदनशील वार्ताओं को सुविधाजनक बनाने के लिए एक आवरण के रूप में किया गया था।

अलगाववादी नेता ने कहा है कि बाद में उन्हें एक ऐसी बैठक के लिए खलनायक के रूप में चित्रित किया गया, जो वास्तव में भारत सरकार के अनुरोध पर शुरू और संचालित की गई थी। मलिक की कानूनी टीम ने एक चल रहे मामले में अपने बचाव के तौर पर यह हलफनामा पेश किया है, जिसमें राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) आतंकवाद के वित्तपोषण के एक मामले में उनके लिए मौत की सज़ा की मांग कर रही है।


अन्य हाई-प्रोफाइल दावे

हलफनामा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक ही सीमित नहीं है। यासीन मलिक का यह भी दावा है कि 1995 में जब वाजपेयी विपक्ष के नेता थे, तब उनकी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी मुलाक़ात हुई थी। मलिक ने एक विनम्र बातचीत का ज़िक्र किया है जिसमें वाजपेयी ने उनसे "जुड़े रहने" का आग्रह किया था, भले ही वह "नाज़ुक धागे" से ही क्यों न जुड़ा हो।


कानूनी निहितार्थ और भविष्य की कार्यवाही

मलिक, जिन्हें 2022 में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है, पर आतंकवाद के वित्तपोषण और भारत की संप्रभुता को ख़तरा पैदा करने वाली गतिविधियों के गंभीर आरोप हैं। अदालत ने उन्हें एनआईए की मौत की सज़ा की याचिका पर जवाब देने के लिए 10 नवंबर तक का समय दिया है। मलिक के हलफनामे में ये विस्फोटक दावे उनकी बचाव रणनीति का एक अहम हिस्सा होने की संभावना है।

सरकार का कहना है कि मलिक का जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद से गहरा नाता रहा है और उसकी मौजूदा जेल इन्हीं गतिविधियों में उसकी संलिप्तता का नतीजा है। हालाँकि, हलफनामा उसकी कानूनी लड़ाई में एक नया और जटिल पहलू जोड़ता है, जिससे पता चलता है कि मलिक का उसी राज्य के साथ सहयोग का इतिहास रहा है जिसके खिलाफ काम करने का अब उस पर आरोप लगाया जा रहा है।

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