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उपराष्ट्रपति ने मध्यावधि इस्तीफा दिया: आगे क्या होगा?

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सोमवार रात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से भारत के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर एक दुर्लभ मध्यावधि रिक्ति पैदा हो गई है। धनखड़ भारत के इतिहास में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ने वाले केवल तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। इससे पहले वी.वी. गिरि और आर. वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था। इसके बाद क्रमशः गोपाल स्वरूप पाठक और शंकर दयाल शर्मा ने पदभार संभाला।

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उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों के लिए अंतरिम व्यवस्था

भारतीय संविधान में कार्यवाहक उपराष्ट्रपति का प्रावधान नहीं है। हालाँकि, चूँकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में भी कार्य करते हैं, इसलिए उपसभापति, जो वर्तमान में हरिवंश नारायण सिंह हैं, उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता का दायित्व संभालेंगे।


अगले चुनाव की समय-सीमा

राष्ट्रपति पद की रिक्ति के लिए छह महीने के भीतर चुनाव अनिवार्य है, जबकि उपराष्ट्रपति पद की रिक्ति के लिए ऐसी कोई सख्त समय-सीमा नहीं है। संविधान में केवल "यथाशीघ्र" चुनाव कराने की आवश्यकता है। भारत का चुनाव आयोग चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए ज़िम्मेदार होगा, जो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत आयोजित किया जाएगा। परंपरा के अनुसार, संसद के किसी भी सदन के महासचिव को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया जाता है।


नए उपराष्ट्रपति का कार्यकाल

रिक्त पद को भरने के लिए चुने गए उम्मीदवार का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से पूरे पाँच वर्ष का होगा, न कि केवल पिछले उपराष्ट्रपति के शेष कार्यकाल का।


उपराष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया को समझना

उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य, मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं। राष्ट्रपति चुनावों के विपरीत, राज्य विधानसभाएँ इस प्रक्रिया में भाग नहीं लेती हैं।

मतदान संसद भवन, नई दिल्ली में गुप्त मतदान के माध्यम से होता है, जिसमें आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का उपयोग करके एकल संक्रमणीय मत होता है। प्रत्येक संसद सदस्य (एमपी) उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में रैंक करता है, और सभी मतों का मूल्य समान होता है।

निर्वाचित घोषित होने के लिए, किसी उम्मीदवार को पूर्व निर्धारित न्यूनतम मतों की संख्या प्राप्त करनी होती है, जिसे कोटा कहा जाता है। इस कोटे की गणना कुल वैध मतों की संख्या को दो से विभाजित करके और एक जोड़कर की जाती है (अंशों को छोड़कर)। यदि प्रारंभिक चरण में कोई भी उम्मीदवार कोटा प्राप्त नहीं कर पाता है, तो सबसे कम प्रथम वरीयता वाले मतों वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। फिर उनके मत मतदाताओं की द्वितीय वरीयता के आधार पर शेष उम्मीदवारों में पुनर्वितरित कर दिए जाते हैं, और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कोई उम्मीदवार आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं कर लेता।


उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए पात्रता मानदंड

उपराष्ट्रपति पद के लिए पात्र होने के लिए, उम्मीदवार को निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए:

* भारत का नागरिक होना चाहिए।

* कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिए।

* राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिए योग्य होना चाहिए।

* किसी भी संसदीय क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए।

* राष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री जैसे पदों के अपवादों को छोड़कर, केंद्र या राज्य सरकारों के अधीन किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।


आप उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े के बाद क्या होता है, इस बारे में और गहराई से जानना चाहते हैं। आइए कुछ अतिरिक्त पहलुओं पर गौर करें:


1. इस्तीफ़ा और उसका तत्काल प्रभाव:

- इस्तीफ़े का कारण: हालाँकि शुरुआती खबरों में "स्वास्थ्य कारणों" का ज़िक्र था, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफ़े, खासकर संसद के मानसून सत्र के पहले दिन, ने राजनीतिक गलियारों में अटकलों को जन्म दिया है। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि राज्यसभा में विपक्ष के साथ उनके संबंध अक्सर विवादास्पद रहे, और कई मौकों पर सभापति के रूप में उनके फैसलों की आलोचना भी हुई। हालाँकि, उनके त्यागपत्र में स्पष्ट रूप से स्वास्थ्य का हवाला दिया गया था।

- प्रभावी तिथि: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे उनके पत्र में कहा गया है कि धनखड़ का इस्तीफ़ा तत्काल प्रभाव से लागू हो गया।

- संवैधानिक अनुच्छेद: उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत इस्तीफ़ा दिया, जिसमें कहा गया है कि उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित पत्र लिखकर इस्तीफ़ा दे सकते हैं।

- आश्चर्यजनक तत्व: हाल ही में उनके हृदय संबंधी ऑपरेशन और जून में बेहोश होने की घटना के बावजूद, इस कदम ने सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्यों सहित कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।


2. उपसभापति की भूमिका:

- अनुच्छेद 91: संविधान का अनुच्छेद 91 राज्यसभा के उपसभापति को सभापति का पद रिक्त होने पर, या जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे हों या राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन कर रहे हों, सभापति के कार्यों का निर्वहन करने का अधिकार देता है।

- वर्तमान उपसभापति: जैसा कि बताया गया है, हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा के वर्तमान उपसभापति हैं। अब वे नए उपराष्ट्रपति के निर्वाचित होने और पदभार ग्रहण करने तक सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करेंगे। मानसून सत्र जैसे चल रहे संसदीय सत्रों के दौरान यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

- उपसभापति की भूमिका की सीमाएँ: यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उपसभापति केवल राज्यसभा के सभापति के कर्तव्यों का पालन करते हैं। वे उपराष्ट्रपति की पूर्ण शक्तियाँ या संवैधानिक पद ग्रहण नहीं करते हैं। उपराष्ट्रपति का पद, जो दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद है और राष्ट्रपति के समान कार्य करने की क्षमता रखता है, रिक्त बना हुआ है।


3. चुनाव प्रक्रिया: गहन विश्लेषण

- "यथाशीघ्र": व्यावहारिक व्याख्या: हालाँकि राष्ट्रपति पद की तरह कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है, फिर भी चुनाव आयोग आमतौर पर इस तरह के महत्वपूर्ण पद को भरने के लिए उचित गति से कार्य करता है। राजनीतिक विचार और संसदीय कैलेंडर अक्सर समय को प्रभावित करते हैं। कुछ रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि धनखड़ के इस्तीफे के 60 दिनों के भीतर औपचारिक चुनाव हो सकते हैं।

- रिटर्निंग ऑफिसर: संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) के महासचिव को बारी-बारी से रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त करने की परंपरा चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता और दक्षता सुनिश्चित करती है।

- नामांकन प्रक्रिया: उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों द्वारा प्रस्तावक और 20 सांसदों द्वारा समर्थक के रूप में नामित किया जाना आवश्यक है। यह आवश्यकता उम्मीदवारों में एक हद तक आम सहमति और गंभीरता सुनिश्चित करती है।

- सुरक्षा जमा: प्रत्येक उम्मीदवार से ₹15,000 की सुरक्षा जमा राशि आवश्यक है।


एकल हस्तांतरणीय मत (एसटीवी) की आगे व्याख्या:

- वरीयता मतदान: एसटीवी में, मतदाता केवल एक उम्मीदवार को नहीं चुनते; वे उन्हें क्रम (1, 2, 3, आदि) देते हैं। इससे मतदाता की अभिव्यक्ति अधिक सूक्ष्म होती है और यह सुनिश्चित होता है कि वोट "बर्बाद" न हों।

- मत हस्तांतरण तंत्र: यदि पहली गणना में कोई भी उम्मीदवार निर्धारित कोटे तक नहीं पहुँचता है, तो सबसे कम प्रथम वरीयता वाले वोट वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है। फिर उनके मतपत्र उन मतपत्रों पर अंकित द्वितीय वरीयता के आधार पर शेष उम्मीदवारों को पुनर्वितरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया जारी रहती है, एक-एक करके उम्मीदवारों को हटाकर उनके मतों को तब तक स्थानांतरित किया जाता है जब तक कि एक उम्मीदवार आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं कर लेता। यह प्रणाली केवल साधारण बहुमत के बजाय व्यापक समर्थन वाले उम्मीदवार को प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन की गई है।

- निर्वाचक मंडल की संरचना: यह महत्वपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सभी सदस्य शामिल हों, जिनमें मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं। यह राष्ट्रपति चुनाव से एक प्रमुख अंतर है, जहाँ राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी भाग लेते हैं।


4. उपराष्ट्रपति की शक्तियाँ और कर्तव्य (राज्यसभा के सभापति के अतिरिक्त):

- कार्यवाहक राष्ट्रपति: यह संभवतः सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है। राष्ट्रपति के निधन, त्यागपत्र, पदच्युति या अन्य कारणों से पद रिक्त होने पर उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या बीमारी के दौरान भी वे राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन करते हैं।

- कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में सीमित कार्यकाल: उपराष्ट्रपति अधिकतम छह महीने की अवधि के लिए राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकता है। इस अवधि के दौरान, एक नए राष्ट्रपति का चुनाव होना आवश्यक है।

- राज्यसभा में निर्णायक मत: यद्यपि राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति सदन का सदस्य नहीं होता है और इसलिए नियमित कार्यवाही में मतदान नहीं कर सकता है, लेकिन बराबरी की स्थिति में उसके पास "निर्णायक मत" होता है।

- विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति: उपराष्ट्रपति कुछ विश्वविद्यालयों, जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय, के पदेन कुलाधिपति के रूप में भी कार्य करता है।

- कोई उत्तराधिकार तंत्र नहीं (उपराष्ट्रपति पद के लिए): राष्ट्रपति के विपरीत, जहाँ उपराष्ट्रपति सीधे पदभार ग्रहण करता है, उपराष्ट्रपति पद के लिए कोई स्वचालित उत्तराधिकार तंत्र नहीं है। इसलिए, नए चुनाव अनिवार्य हैं।


5. इस्तीफ़ों का ऐतिहासिक संदर्भ:

- वी.वी. गिरि (1969): राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया।

- आर. वेंकटरमन (1987): राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस्तीफा दिया।

- जगदीप धनखड़ (2025): धनखड़ के इस्तीफे का अनोखा पहलू यह है कि वे स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े बिना ही बीच कार्यकाल में इस्तीफा देने वाले पहले उपराष्ट्रपति हैं। इसने उनके इस्तीफे को लेकर राजनीतिक चर्चाओं को और बढ़ा दिया है।

यह अधिक विस्तृत विश्लेषण भारत में उपराष्ट्रपति के मध्यावधि इस्तीफे के निहितार्थों की व्यापक समझ प्रदान करता है।

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